पदार्थ का वर्गीकरण 9th, 9th रसायन शास्त्र के नोट्स अध्याय 2,

  रासायनिक संरचना के आधार पर पदार्थों का वर्गीकरण (Classification Based on Chemical Constitution)

:-- रासायनिक संरचना के आधार पर पदार्थ को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है--

       (A) तत्व

       (B) यौगिक

       (C) मिश्रण

(A) तत्व:-- पदार्थ का वह शुद्ध और सरलतम रूप जो किसी भी भौतिक या रासायनिक विधि द्वारा दो या दो से अधिक सरल द्रव्यों में विभाजित नहीं किया जा सकता है तत्व कहलाता है। जैसे--हाइड्रोजन, ऑक्सिजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, तांबा, चांदी ,सोना आदि।

* तत्व की विशेषताएं:--

(1) यह एक ही प्रकार के परमाणुओं से बना होता है।

(2) अन्य तत्वों के गुणों से भिन्न किसी तत्व के कुछ विशिष्ट गुण होते हैं। तत्व को किसी भी रासायनिक या भौतिक विधि द्वारा दो या दो से अधिक सरल द्रव्यों में विभाजित नहीं किया जा सकता है।

    तत्वों का वर्गीकरण (Classification of Elements)

-- तत्व मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं--

       1. धातु (metals)

       2. अधातु (nonmetals)

1. धातु (metals):--

(a) धातुओं में एक विशेष प्रकार की चमक होती है जिसे धातुई चमक कहते हैं।

(b) धातुएं ऊष्मा एवं विद्युत की सुचालक होती हैं।

(c) धातुएं ठोस अवस्था में आघातवर्धनीय  और तन्य होती हैं।

(d) अधिकांश धातुएं कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होती हैं। पारा एक मात्र ऐसा धातु है जो द्रव अवस्था में पाया जाने वाला धातु है। सोडियम, पोटैशियम, तांबा, चांदी, लोहा, ऐल्युमिनियम आदि धातुएं हैं।

 2. अधातु (nonmetals):--

(a) अधातुओं में कोई विशेष चमक नहीं होती है।(अपवाद--आयोडीन में चमक होती है।)

(b) अधातु ऊष्मा एवं विद्युत  के कुचालक होते हैं।(अपवाद--ग्रेफाइट विद्युत सुचालक होते हैं।)

(c)अधातुएं प्राय: गैस अवस्था में पाए जाते हैं। कुछ अधातु ठोस रूप में पाए जाते है जो भंगुर होते हैं।(अपवाद--ब्रोमीन एक मात्र अधातु है जो द्रव अवस्था में पाया जाता है।)

नाइट्रोजन, क्लोरीन, गंधक, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि अधातुएं हैं।

# उपधातु:--

    ऐसे तत्व जो धातु ,अधातु दोनों के गुण रखते हैं उपधातु कहलाते हैं। जैसे--बोरोन, सिलिकॉन, जर्मेनियम आदि।

 # यौगिक:--

:-- वह शुद्ध पदार्थ जो दो या अधिक तत्वों के भार के विचार से एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग के फलस्वरूप बनता है, यौगिक कहलाता है। जैसे-- चूना पत्थर (caco3), अमोनिया (NH₃), हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl), कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) आदि।

        यौगिक के प्रमुख गुण

  1. यौगिक के अवयवी तत्वों को किसी भी यांत्रिक या भौतिक विधि द्वारा अलग -अलग नहीं किया जा सकता है।
  2. किसी यौगिक के गुण उसके अवयवी तत्वों के गुणों से भिन्न होते हैं।
  3. किसी यौगिक के बनने में ऊष्मा या प्रकाश के रूप में ऊर्जा का प्राय: उत्सर्जन या अवशोषण होता है।
  4. यौगिक में उसके अवयवी तत्व भार के विचार से एक निश्चित अनुपात में रहते हैं।
  5. यौगिक के संघटन और गुण सर्वदा एकसमान रहते हैं। अर्थात् यौगिक एक समांग पदार्थ है।
यौगिक के द्रवणांक और क्वथनांक निश्चित होते हैं।                     तत्व और यौगिक में अंतर

  • तत्व वह पदार्थ है जिसे दो या अधिक विभिन्न पदार्थों में विभाजित नहीं किया जा सकता है। जबकि यौगिक को रासायनिक विधियों द्वारा दो या अधिक विभिन्न गुण वाले पदार्थों में विभक्त किया जा सकता है
  • तत्व एक ही प्रकार के परमाणुओं का बना होता है। किन्तु यौगिक विभिन्न प्रकार के परमाणुओं का बना होता है।
  • तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुण यागिकों से भिन्न होते हैं। परंतु यौगिक के भौतिक और रासायनिक गुण तत्वों से भिन्न होते हैं।
  • तत्व का सुक्ष्मतम  कण परमाणु कहलाता है। लेकिन यौगिक का सुक्ष्मतम कण अणु कहलाता है।

     # मिश्रण:--दो या दो से अधिक तत्वों या  यौगिकों को किसी भी अनुपात में परस्पर मिला देने से मिश्रण बनता है। इसके अवयवों को सरल यांत्रिक विधियों द्वारा पृथक किया जा सकता है। जैसे--वायु, बारूद, इस्पात, सरवत आदि।

मिश्रण दो प्रकार के होते हैं।--

(1) समांग मिश्रण-- जिस पदार्थ के गुण एवं संघटन सम्पूर्ण पदार्थ में एकरूप में होते हैं, वह पदार्थ समांग मिश्रण कहलाते हैं। जैसे-- इस्पात,वायु, जल तथा एल्कोहल का मिश्रण आदि।

(2) विषमांग मिश्रण-- जिस पदार्थ के गुण और संघटन पदार्थ के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होते हैं वह पदार्थ विषमांग मिश्रण कहलाते हैं। जैसे--चीनी और बालू का मिश्रण, बालू और साधारण नमक का मिश्रण आदि।

          मिश्रण के प्रकार 

  1. ठोस-ठोस का मिश्रण-- सोडियम क्लोराइड और अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण।
  2. ठोस-द्रव का मिश्रण-- साधारण नमक और जल का मिश्रण।
  3. ठोस-गैस का मिश्रण-- मिट्टी के कणों के बीच वायु फसी रहती है जो ठोस में गैस के उदाहरण हैं।
  4. द्रव गैस का मिश्रण-- कोलड्रिंक में कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण।
  5. गैस-गैस का मिश्रण-- वायु में गैसों का विभिन्न संघटन मौजूद होते हैं।
  6. द्रव-द्रव का मिश्रण-- जल एल्कोहल का मिश्रण।
                मिश्रण और यौगिक में अंतर
  • मिश्रण दो या अधिक पदार्थों को किसी भी अनुपात में मिला देने से बनता है। यौगिक दो या अधिक तत्वों के एक निश्चित अनुपात में संयोग होने से बनता है।
  • मिश्रण के अवयवों को सरल यांत्रिक विधियों द्वारा पृथक किया जा सकता है। यौगिक के अवयवों को सरल यांत्रिक विधियों से पृथक नहीं किया जा सकता है
  • मिश्रण समांग या विषमांग हो सकता है। किन्तु यौगिक हमेशा समांग ही होता है।
  • मिश्रण बनने में कोई नया पदार्थ नहीं बनता है। यौगिक बनने अवयवों के भिन्न एक नया पदार्थ बनता है।
  • मिश्रण बनने में ऊर्जा परिवर्तन नहीं होता है। परंतु यौगिक बनने में ऊर्जा परिवर्तन अवश्यंभावी है।
  • मिश्रण के द्रवणांक , क्वथनांक आदि गुण निश्चित नहीं होते हैं।। परंतु यौगिक के द्रवणांक , क्वथनांक आदि गुण निश्चित होते हैं।
  • मिश्रण में दो या अधिक प्रकार के अणु विद्यमान रहते हैं। जबकि यौगिक एक ही प्रकार के अणु का बना होता है।
  • मिश्रण का घनत्व अवायवी पदार्थों के घनत्व का औसत होता है।परंतु यौगिक का घनत्व अवयवी पदार्थों के घनत्व से अलग होते है।
            मिश्रण के अवयवों को अलग-अलग करना
  1. हाथ से चुनकर-- चावल में उपस्थित पत्थर के टुकड़ों को हाथ से चुनकर अलग करना।
  2. चलनी से चाल कर-- गेहूं के आटे से चोकर आदि अलग करना।
  3. थिराना-- किसी द्रव में अविलय पदार्थ के मिश्रण को अलग करना।
  4. मंथन-- दूध से मखन को मंथन विधि द्वारा अलग करना।
  5. छानना--चाय से पत्ती को छान अलग करने की विधि।
  6. चुंबकीय पृथक्करण-- लौह-चूर्ण और गंधक के मिश्रण से लौह-चूर्ण को पृथक करने की विधि।
  7. उर्ध्वपातन-- अमोनियम क्लोराइड तथा साधारणनमक के मिश्रण को पृथक करना।
  8. वाष्पन--जल तथा सोडियम क्लोराइड के मिश्रण को शुद्ध करना।
# क्रोमैटोग्राफी:-- किसी प्राकृतिक रंग में उपस्थति विभिन्न रंग वाले पदार्थों को एक विशेष तकनीक की सहायता से पृथक किया जाता है जिसे क्रोमैटोग्राफी कहते हैं। यह मिश्रण को अलग करने की एक विधि है।


# थिराना-- किसी द्रव और अविलेय ठोस पदार्थ के मिश्रण को बीकर में लेकर कुछ समय तक स्थिर छोड़ दिया जाए तो ठोस के कण बीकर की तल में बैठ जाते है जिसे तलछट कहते हैं। इस प्रक्रिया को थिराना कहते है। ये मिश्रण को अलग करने की विधि है।

# निथारना-- थिराना के विधि के पश्चात तलछट से द्रव को अलग करने की विधि को निथारना कहते हैं।

# रवाकरण-- जिस प्रक्रिया में विलयन से शुद्ध ठोस पदार्थ रवों के रूप में पृथक होते हैं, रवाकरण कहलाती है।


# भौतिक परिवर्तन-- जिस परिवर्तन के अंदर पदार्थ के कुछ गुणों में थोड़ा अस्थाई परिवर्तन अवश्य हो जाता है, किन्तु उसके मूल संघटन और द्रव्यमान में कोई परिवर्तन नहीं होता है और इस परिवर्तन के फलस्वरूप कोई नया पदार्थ नहीं बनता है। उसे भौतिक परिवर्तन कहते हैं। जैसे-- जल का वाष्प बनना, नमक और पानी का विलयन, विद्युत बल्ब का जलना आदि।

# रासायनिक परिवर्तन-- जिस परिवर्तन के फलस्वरूप कोई पदार्थ नए पदार्थ में बदल जाते है जिसके गुण मूल पदार्थ से पूर्णत: भिन्न होते हैं और फिर पदार्थ अपनी मूल अवस्था में नहीं आती रासायनिक परिवर्तन कहलाता है। जैसे--  कागज का जलना, लोहे में जंग लगना, दूध से दही बनना आदि।
           
            भौतिक और रासायनिक परिवर्तन में अंतर
  • भौतिक परिवर्तन के मौलिक गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है किन्तु रासायनिक परिवर्तन के गुणों में पूर्णत: परिवर्तन होता है।
  • भौतिक परिवर्तन में नया पदार्थ नहीं बनता है। परंतु रासायनिक परिवर्तन में नया पदार्थ अवश्य बनता है।
  • भौतिक परिवर्तन अस्थाई होता है। लेकिन रासायनिक परिवर्तन स्थाई होता है।
  • भौतिक परिवर्तन में पदार्थ की भौतिक अवस्था या उसके कुछ भौतिक गुण बदल जाते हैं। परंतु रासायनिक परिवर्तन में पदार्थ की भौतिक और रासायनिक गुण दोनों ही बदल जाते हैं।
  • भौतिक परिवर्तन में ऊष्मा-परिवर्तन हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है। लेकिन रासायनिक परिवर्तन में ऊष्मा-परिवर्तन अवश्य होता है।
  • भौतिक परिवर्तन में पदार्थ के द्रव्यमान में कोई परिवर्तन नहीं होता है। किन्तु रासायनिक परिवर्तन में पदार्थ का द्रव्यमान परिवर्तित हो जाता है।
# विलयन-- किसी द्रव में दो या दो से अधिक पदार्थों का समांग मिश्रण विलयन कहलाता है।

# विलेय--द्रव में घुल कर विलयन बनाने वाले पदार्थों को विलेय कहते हैं।

# विलायक--जिस द्रव में किसी विलेय को घुलाया जाता है उसे विलायक कहते हैं।

# जलीय विलयन--किसी पदार्थ को जल में घुलाकर जो विलयन बनता है उसे जलीय विलयन कहते हैं।

# अजलीय विलयन--कुछ ऐसे पदार्थ जो जल के अतिरिक्त किसी अन्य पदार्थ में घुलकर विलयन बनाते हैं अजलिय विलयन कहलाते हैं। जैसे-- एल्कोहल का विलयन, ऐसीटोन का विलयन, कार्बन डाइऑक्साइड का विलयन आदि।

          विलयन के प्रकार
1. संतृप्त विलयन-- किसी निश्चित ताप पर बना वह विलयन जिसमें विलेय की अधिकतम मात्रा घुली हो, संतृप्त विलयन कहलाता है।

2. असंतृप्त विलयन--  किसी निश्चित ताप पर बना वह विलयन जिसमें विलेय की और अधिक मात्रा उस ताप पर घुलाई जा सकती है, असंतृप्त विलयन कहलाता है।


           विलयन के प्रमुख गुण
1. विलयन स्वच्छ और पारदर्शी होता है
2. विलयन को कुछ समय तक स्थिर छोड़ देने पर भी विलेय के कण नीचे नहीं बैठते हैं
3. विलयन को माइक्रोस्कोप की सहायता से देखने पर विलेय तथा विलायक के कण अलग-अलग नहीं दिखाई देते हैं।
4. विलयन समांग होते हैं।
5. विलयन के अवयवों को छानकर पृथक नहीं किया जा सकता है।
6. विलयन के कणों का व्यास दस की दस की घात-8cm  के क्रम में होती है।

# अतिसंतृप्त विलयन:--वह संतृप्त विलयन जिसमें विलेय की मात्रा उस विलयन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक विलेय की मात्रा से अधिक घुली हुई हो, अतिसंतृप्त विलयन कहलाता है।

            
                अतिसंतृप्त विलयन की पहचान
  1. अतिसंतृप्त विलयन को काँच की छड़ से चलाने पर विलेय के रवे पृथक होने लगती है।
  2. अतिसंतृप्त विलयन में बाहर से विलेय का एक छोटा टुकड़ा डाल देने पर विलयन से अतिरिक्त विलेय के रवे पृथक हो जाते हैं।

# विलेयता:-- किसी निश्चित ताप और दाब पर 100g विलायक में किसी विलेय की घुलानेवाली अधिकतम मात्रा, जो विलयन को संतृप्त कर दे, उस ताप और दाब पर उस विलेय की विलायक में विलेयता कहते हैं।

       विलेय की विलेयता=विलेय की मात्रा×100/विलायक की मात्रा


# निलंबन:-- निलंबन एक विषमांक पदार्थ है जिसमें किसी ठोस पदार्थ के छोटे-छोटे कण द्रव या गैस में घुलते नहीं बल्कि सम्पूर्ण द्रव या गैस में निलंबित स्थिति में रहते हैं। जैसे--कीचड़युक्त जल, बालू और जल का मिश्रण आदि।

               निलंबन के गुण
  1. निलंबन एक विषमांग मिश्रण है।
  2. निलंबन में ठोस के कण काफी बड़े होते हैं जिन्हें नग्न आंखों से देखा जा सकता है।
  3. निलंबित ठोस के कणों का व्यास 10-⁵cm या इससे अधिक होता है।
  4. ठोस के निलंबित कण छन्ना पत्र को पार नहीं कर सकते हैं।
  5. निलंबन में निलंबित ठोस के कण द्रव से अलग हो जाने की प्रवृति रखते हैं
 
# कोलॉइड:-- किसी विलयन की वह अवस्था जिसमें विलेय के कणों का आकार वास्तविक विलयन और निलंबन में उपस्थित कणों के आकार का मध्यवर्ती होता है कोलॉइड कहलाता है। जैसे-- स्याही, दूध, रक्त, टूथपेस्ट, कुहासा आदि।

         कोलॉइड विलयन के गुण
  1. कोलॉइड विलयन विषमांग होते है। इसमें परिक्षेपित कणों को उच्च क्षमता वाले माइक्रोस्कोप की सहायता से देखा जा सकता है।
  2. कोलॉइड के कण छन्ना पत्र को आसानी से पार कर सकते हैं।
  3. कोलॉइड के कण स्थायी होते हैं। कोलॉइड को स्थिर छोड़ देने पर नीचे नहीं बैठते हैं।
  4. कोलॉइड के कणों का व्यास 10-⁷cm और 10-⁵cm के बीच होता है।

# बऊनी गति:--कोलॉइडी विलयन के अन्तर्गत कोलॉइड के कण टेढ़े-मेढ़े मार्ग से होकर अनवरत गमन करते हैं। जिसे बऊनी गति कहते है।

#टिंडल प्रभाव:-- कोलॉइडी विलयन में प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडल प्रभाव कहते हैं।

सांद्रण या सामर्थ्य:-- विलयन के इकाई परिमाण में घुले हुए विलेय की मात्रा को विलयन का सांद्रण या सामर्थ्य कहते हैं।


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